जयशंकर प्रसाद, छायावाद के महत्त्वपूर्ण स्तंभों में से एक हैं। ये एक सुप्रसिद्ध नाटककार के रूप में विख्यात हैं और छायावाद के जनक माने जाते हैं। इनके नाटक 'चन्द्रगुप्त' (1931) में विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस संघर्ष में भारत की विजय का यशोगान किया गया है। प्रसाद ने कई ऐतिहासिक नाटक लिखे हैं, जिनमें स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, अजातशत्रु आदि प्रमुख रूप से विख्यात हैं। यह नाटक चार अंक का है। चन्द्रगुप्त और चाणक्य पर अनेक देशी और विदेशी लोगों ने बहुत कुछ लिखा है, लेकिन प्रसाद का यह नाटक उन सबसे भिन्न है । प्रसाद के समस्त नाटकों में यह सबसे विस्तृत और प्रौढ़ नाट्यकृति है। इस नाटक में कुल चार अंक और चवालीस दृश्य हैं। इनमें गीतों की संख्या तेरह है। इस नाटक में चन्द्रगुप्त की कथा के साथ-साथ और भी अन्य कथाओं को सम्मिलित किया गया है।